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राधारानी का दरबार सबसे ऊँचा क्यों?
सर्वोच्च रस की प्राप्ति के लिए माधुर्य भाव-युक्त भक्ति में महारसिकों का अधिक झुकाव श्री राधारानी के प्रति होता है। हमारे शास्त्रों में भी श्री राधारानी के प्रति अधिक अनुराग करने के कथन कई स्थानों पर मिलते हैं -
Read Moreपरदोषदर्शी नहीं स्वदोषदर्शी बनें
हमारा पूरा जीवन कितना खोखला है, हम स्वयं अनंत दोषों के भंडार हैं लेकिन फिर भी हमारा पूरा जीवन दूसरों के दोषदर्शन में यानि उनके अवगुण देखने में, कथन करने इत्यादि में ही व्यतीत हो जाता है। हमें गंभीरतापूर्वक इस विषय में विचार करना चाहिए कि दूसरों के दोष देखने या उनकी निंदा इत्यादि
Read Moreमृत्यु के समय भगवान का नाम कौन ले सकता है ?
प्रायः भोले-भाले लोग अजामिल का उदाहरण देकर कहते हैं कि मृत्यु के समय भगवान का नाम लेने से भगवान का लोक प्राप्त होता है। कई कथावाचकों इत्यादि के द्वारा अजामिल के उद्धार का आख्यान भ्रामक तरीके से लोगों के बीच में प्रचारित किया गया
Read Moreमान अपमान को छोड़ना होगा
हमारे परम-चरम लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति के लिए अनंत जन्मों से प्रयत्नशील रहने पर भी हम लक्ष्य से वंचित रहे क्योंकि प्रयत्न के साथ जिन चीजों का त्याग करना था वो हमने नहीं किया। जिस मान-अपमान की बीमारी को छोड़ना था उसे मन से छोड़ न सके , उसी झगड़े में सदा उलझे रहे ।
Read Moreसबसे बड़ा मूर्ख कौन है ?
कितनी विचित्र बात है ! कि इस संसार में हर व्यक्ति सदा स्वयं को सबसे समझदार और दूसरे को मूर्ख मानता है और यही सिद्ध करने के लिए प्रयत्नशील भी रहता है जबकि वास्तविकता ये है कि हम सभी मूर्ख हैं। प्रत्येक मायाबद्ध मनुष्य जो स्वयं को देह मानता है, शरीर को ही 'मैं' मानता है वो ही सबसे बड़ा मूर्ख है और ऐसे हम सभी हैं।
Read Moreभक्ति में अनन्यता परमावश्यक है
हम सभी अनंतानंत जन्मों से भक्ति करते आए हैं क्योंकि जीव अनादि है इसलिए अनंत बार मानव देह मिला, सद्गुरु मिले, हमने भक्ति भी की लेकिन अनन्यता न होने के कारण हमारी भक्ति कभी परिपक्व नहीं हो पाई, पूर्ण नहीं हो पाई और इसी गड़बड़ी के कारण हम आज भी अपने परम चरम लक्ष्य से वंचित हैं।
Read Moreजगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी द्वारा भक्ति संदेश!
सारा विश्व दान करो गोविंद राधे। तो भी गुरु ऋण ते ना उऋण करा दे ।। ( राधा गोविंद गीत )
सद्गुरु कृपाकांक्षी भक्तवृन्द ! जय श्री राधे !
इस अगाध भवसिंधु में डूबते हुए, अकुलाते हुए जीवों के लिए सद्गुरु ही एकमात्र आश्रय हैं ।
संसार मृगतृष्णा के समान है
आनंद-ब्रह्म का अंश होने के कारण प्रत्येक जीव अनादिकाल से एकमात्र आनंद ही प्राप्त करना चाहता है। यही जीव का परम चरम लक्ष्य है -
सुखाय कर्माणि करोति लोको न तै: सुखं वान्यदुपारमं वा।
विंदेत भूयस्ततएव दुःखं यदत्र युक्तं भगवान्वदेन्न:(भागवत : 3-5-2)
भागवत में श्री राधा का वर्णन क्यों नहीं है ?
कुछ भोले-भाले लोग जिन्हें किसी वास्तविक संत का सान्निध्य प्राप्त नहीं है वे ऐसी शंका करते हैं कि श्री राधा का वर्णन भागवत में क्यों नहीं है? श्रीमद्भागवत तो सर्वश्रेष्ठ महापुराण है जिसमें श्री कृष्ण लीलाओं का विशेष निरूपण किया गया है फिर उसमें कहीं राधा तत्त्व का निरूपण क्यों नहीं है?
Read Moreभक्ति का अधिकारी कौन है
समस्त वेदों-शास्त्रों में भक्ति को ही भगवत्प्राप्ति का एक मात्र मार्ग बताया गया है।
भक्तिरेवैनं नयति भक्तिरेवैनं पश्यति भक्तिरेवैनं दर्शयति
भक्तिवशः पुरुषः भक्तिरेव भूयसी
(माठर श्रुति)