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March 20, 2025

राधारानी का दरबार सबसे ऊँचा क्यों?

सर्वोच्च रस की प्राप्ति के लिए माधुर्य भाव-युक्त भक्ति में महारसिकों का अधिक झुकाव श्री राधारानी के प्रति होता है। हमारे शास्त्रों में भी श्री राधारानी के प्रति अधिक अनुराग करने के कथन कई स्थानों पर मिलते हैं -

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March 9, 2025

परदोषदर्शी नहीं स्वदोषदर्शी बनें

हमारा पूरा जीवन कितना खोखला है, हम स्वयं अनंत दोषों के भंडार हैं लेकिन फिर भी हमारा पूरा जीवन दूसरों के दोषदर्शन में यानि उनके अवगुण देखने में, कथन करने इत्यादि में ही व्यतीत हो जाता है। हमें गंभीरतापूर्वक इस विषय में विचार करना चाहिए कि दूसरों के दोष देखने या उनकी निंदा इत्यादि

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February 23, 2025

मृत्यु के समय भगवान का नाम कौन ले सकता है ?

प्रायः भोले-भाले लोग अजामिल का उदाहरण देकर कहते हैं कि मृत्यु के समय भगवान का नाम लेने से भगवान का लोक प्राप्त होता है। कई कथावाचकों इत्यादि के द्वारा अजामिल के उद्धार का आख्यान भ्रामक तरीके से लोगों के बीच में प्रचारित किया गया

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February 5, 2025

मान अपमान को छोड़ना होगा

हमारे परम-चरम लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति के लिए अनंत जन्मों से प्रयत्नशील रहने पर भी हम लक्ष्य से वंचित रहे क्योंकि प्रयत्न के साथ जिन चीजों का त्याग करना था वो हमने नहीं किया। जिस मान-अपमान की बीमारी को छोड़ना था उसे मन से छोड़ न सके , उसी झगड़े में सदा उलझे रहे ।

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January 22, 2025

सबसे बड़ा मूर्ख कौन है ?

कितनी विचित्र बात है ! कि इस संसार में हर व्यक्ति सदा स्वयं को सबसे समझदार और दूसरे को मूर्ख मानता है और यही सिद्ध करने के लिए प्रयत्नशील भी रहता है जबकि वास्तविकता ये है कि हम सभी मूर्ख हैं। प्रत्येक मायाबद्ध मनुष्य जो स्वयं को देह मानता है, शरीर को ही 'मैं' मानता है वो ही सबसे बड़ा मूर्ख है और ऐसे हम सभी हैं।

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November 7, 2024

भक्ति में अनन्यता परमावश्यक है

हम सभी अनंतानंत जन्मों से भक्ति करते आए हैं क्योंकि जीव अनादि है इसलिए अनंत बार मानव देह मिला, सद्गुरु मिले, हमने भक्ति भी की लेकिन अनन्यता न होने के कारण हमारी भक्ति कभी परिपक्व नहीं हो पाई, पूर्ण नहीं हो पाई और इसी गड़बड़ी के कारण हम आज भी अपने परम चरम लक्ष्य से वंचित हैं।

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September 24, 2024

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी द्वारा भक्ति संदेश!

सारा विश्व दान करो गोविंद राधे। तो भी गुरु ऋण ते ना उऋण करा दे ।। ( राधा गोविंद गीत )
सद्गुरु कृपाकांक्षी भक्तवृन्द ! जय श्री राधे !
इस अगाध भवसिंधु में डूबते हुए, अकुलाते हुए जीवों के लिए सद्गुरु ही एकमात्र आश्रय हैं ।

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