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August 5, 2019

जीवन पानी के बुलबुले के समान है

कितने आश्चर्य की बात है कि दिन रात मिथ्या अहंकार में जीता हुआ ये मनुष्य अपने चारों ओर मृत्यु का  तांडव देखते हुए भी अपनी मृत्यु को भूल जाता है।

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July 29, 2019

भक्ति का अधिकारी कौन है ?

भगवान केवल भक्ति से ही रीझते हैं अन्य किसी गुण, योग्यता इत्यादि की अपेक्षा नहीं करते। इसलिए भक्ति मार्ग के अधिकारी सभी जीव हैं।

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July 22, 2019

भक्ति में अनन्यता परमावश्यक है

हम सभी अनंतानंत जन्मों से भक्ति करते आए हैं क्योंकि जीव अनादि है इसलिए अनंत बार मानव देह मिला, सद्गुरु मिले, हमने भक्ति भी की लेकिन अनन्यता न होने के कारण हमारी भक्ति कभी परिपक्व नहीं हो पाई

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July 15, 2019

परदोषदर्शी नहीं स्वदोषदर्शी बनें

हमारा पूरा जीवन कितना खोखला है, हम स्वयं अनंत दोषों के भंडार हैं लेकिन फिर भी हमारा पूरा जीवन दूसरों के दोषदर्शन में यानि उनके अवगुण देखने में, कथन करने इत्यादि में ही व्यतीत हो जाता है।

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July 8, 2019

संसार मृगतृष्णा के समान है

आनंद-ब्रह्म का अंश होने के कारण प्रत्येक जीव अनादिकाल से एकमात्र आनंद ही प्राप्त करना चाहता है। यही जीव का परम चरम लक्ष्य है

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July 1, 2019

मनुष्य ही भाग्य विधाता है

संसार में अधिकांश लोग भाग्य, भाग्य का नारा लगाकर अकर्मण्य हो जाते हैं। घोर संसारी लोग तो ऐसा करते ही हैं साथ ही अध्यात्म पथ पर चलने की इच्छा रखने वाले लोग भी प्रायः यह कहते देखे जाते हैं कि...

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June 17, 2019

वैराग्य क्या है और कैसे हो ?

संसार में प्रायः लोग वैराग्य के वास्तविक अर्थ को समझे बिना ही स्वयं को विरक्त मानकर इस भ्रम में जीते रहते हैं कि हम भक्ति के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ रहे हैं।

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June 10, 2019

संग का प्रभाव

मनुष्य के जीवन पर संग का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। हम जैसा संग करते हैं वैसी ही हमारी चित्तवृत्ति हो जाती है, पुनः तदनुसार ही मनुष्य का व्यवहार क्रियाकलाप इत्यादि प्रभावित होते हैं।

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June 3, 2019

मन : हमारा शत्रु भी मित्र भी

हमारे शास्त्रों ,में मनुष्य की एकादश इंद्रियाँ बताई गई हैं। इनमें से पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं - आँख, नाक, कान, त्वचा, रसना एवं पाँच कर्मेन्द्रियाँ  हैं - हाथ, पैर, वाणी, मल विसर्जन और प्रजनन की इन्द्रियाँ। ग्यारहवीं इन्द्रिय है, ‘मन‘।

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May 27, 2019

मानव देह : एक अनमोल हीरा

मानव देह प्राप्त सभी जीव परम सौभाग्यशाली हैं। देवताओं से भी अधिक बड़भागी हैं। 84 लाख प्रकार के देहधारियों में केवल मनुष्य देहधारी ही सर्वश्रेष्ठ है।

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