जीवन पानी के बुलबुले के समान है

August 5, 2019

         

कितने आश्चर्य की बात है कि दिन रात मिथ्या अहंकार में जीता हुआ ये मनुष्य अपने चारों ओर मृत्यु का  तांडव देखते हुए भी अपनी मृत्यु को भूल जाता है। महाभारत में जब एक यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न किया – ‘किमाश्चर्यं ?’ संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? तो उस समय धर्मराज युधिष्ठिर ने यही उत्तर दिया था –

अहन्यहनिभूतानि गच्छन्तीह यमालयम्

शेषा: स्थिरत्वमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्।

 

अर्थात् प्रतिदिन लोगों को अपनी आँखों के सामने इस संसार से जाते हुए, मरते हुए देखकर भी शेष लोग यही समझते हैं हमें तो अभी यहीं रहना है, इससे बड़ा आश्चर्य और कोई नहीं हो सकता।

 

मनुष्य की सारी लापरवाहियों का, अपराधों का, अज्ञानता का कारण यही है कि वह अपनी मृत्यु को भूल जाता है कि काल निरंतर घात लगाए बैठा है और किसी भी क्षण में यहाँ से उसका टिकट कट जाएगा, अर्थात् इस संसार से जाना होगा। यह मानव देह छिन जाएगा और अपने-अपने कर्मों के अनुसार पुनः अन्य योनियों में भ्रमण करते हुए दुःख भोगना होगा। हमें बारम्बार इस जीवन की क्षणभंगुरता पर विचार करना चाहिए कि हमारा अस्तित्व है ही क्या?  कबीरदास जी ने कहा –

 

पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात,

एक दिना छिप जायेगा, ज्यों तारा परभात।

 

अरे हमारी हैसियत तो केवल एक पानी के बुलबुले जितनी है जो कुछ सेकण्ड्स को जल में उत्पन्न होकर फूट जाता है –

 

आयु जल बुलबुला गोविंद राधे,

जाने कब फूट जाये सबको बता दे।

(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)

फिर भी मनुष्य इस सत्य से मुँह मोड़कर दिन-रात इस अनित्य जगत को अपना मानकर धन-सम्पत्ति के पीछे दौड़ते-दौड़ते ही अचानक काल के गाल में समा जाता है। जीव की इस दयनीय स्थिति पर उदास होते हुए कबीरदास जी ने कहा –


कौड़ी-कौड़ी जोरि के, जोरे लाख करोर,

चलती बेर न कछु मिल्यो, लइ लंगोटी तोर,

हाड़ जरै ज्यों लाकड़ी, केस जरै ज्यों घास,

सब जग चलता देख के, भयो कबीर उदास।

 

यही हमारे जीवन का अकाट्य सत्य है। सारे वेद-शास्त्र, संत यही बात हमें समझाते हैं कि इस सत्य से आँख न मूँदों बल्कि बारम्बार अपनी मृत्यु का चिंतन करते हुए अपने मन को निरंतर हरि-गुरु भक्ति में ही लगाने का प्रयास करो, यही जीवन का सार है। मृत्यु के उपरान्त केवल यह भक्ति ही साथ जाएगी जो हमें सद्गति दिला सकती है और जिससे संसार में आवागमन का चक्र समाप्त हो जाता है। इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ही यह मानव जीवन भगवान ने कृपा करके प्रदान किया है। अगर अब भी हमने शेष जीवन को नहीं सँवारा और बिना भगवद्भक्ति के ही प्राण पखेरू उड़ गए तो केवल पछताना ही शेष रह जाएगा। इसलिए संत नारायण दास चेताते हुए कहते हैं –


बहुत गई थोड़ी रही, नारायण अब चेत,

काल चिरैया चुग रही, निसि दिन आयु खेत।

 

इसी आशय से जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज कहते हैं –

सारी में थोड़ी बची गोविंद राधे,

बची खुची थोड़ी ते सारी बना दे।

(राधा गोविंद गीत)

 

अर्थात् अब भी जो आयु शेष है उसमें भी भक्ति करके तुम अपनी अनादिकालीन बिगड़ी बात बना सकते हो। इसलिए देर न करो, उधार न करो, कल पर न टालो –


न श्वः श्व उपासीत को हि पुरुषस्य श्वो वेद (वेद)

 

वेद कहता है ‘कल करूँगा, कल करूँगा’ ऐसी बात नहीं सोचनी चाहिए। मनुष्य के कल को कौन जानता है, कल का दिन मिले न मिले। इसलिए भक्ति हेतु अभी से संकल्पबद्ध हो जाओ –


आज करूँ कहो जनि गोविंद राधे,

अभी करूँ यह कहि मन को लगा दे।

( राधा गोविंद गीत )

 

और मृत्यु का चिंतन जितना प्रबल होगा हमें भक्ति का संकल्प लेने में उतनी आसानी होगी। इसलिए कहा गया –


दो बातन को भूल मत, जो चाहे कल्यान,

नारायण इक मौत को, दूजो श्री भगवान।

 

अस्तु अपने कल्याण के लिए हमें बची हुई सभी श्वांसों को प्रभु को समर्पित करना है, उन्हीं का चिंतन करना है ताकि इस मृत्यु की भी सदा-सदा को मृत्यु हो जाए, यह फिर हमारे पास न फटक सके और हम अनंतकाल तक भगवान के दिव्यधाम में रहकर उनकी नित्य सेवा का सौरस्य प्राप्त कर सकें –


अर्पण कर दो राम को, बचे हुए सब श्वांस,

स्मरण करो प्रभु का सदा, मन में भर उल्लास।

मौत मरेगी सदा को, फिर न आयेगी पास,

रामधाम में पहुँच तुम, बन जाओगे दास।

 

#सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)