भागवत में श्री राधा का वर्णन क्यों नहीं है ?
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी द्वारा विशेष लेख!
कुछ भोले-भाले लोग जिन्हें किसी वास्तविक संत का सान्निध्य प्राप्त नहीं है वे ऐसी शंका करते हैं कि श्री राधा का वर्णन भागवत में क्यों नहीं है? श्रीमद्भागवत तो सर्वश्रेष्ठ महापुराण है जिसमें श्री कृष्ण लीलाओं का विशेष निरूपण किया गया है फिर उसमें कहीं राधा तत्त्व का निरूपण क्यों नहीं है? श्रीमद्भागवत तो सबसे प्रमुख ग्रंथ है जो समस्त वेदों-शास्त्रों का निचोड़ है।
सर्वोपनिषदां साराज्जाता भागवती कथा
इसलिए भागवत के समान कोई ग्रंथ नहीं माना गया –
निम्नगानां यथा गंगा देवानामच्युतो यथा
वैष्णवानां यथा शम्भुः पुराणानामिदं तथा (भागवत : 12-13-16)
श्रीमद् भागवत उपनिषदों का भी भाष्य है, ब्रह्मसूत्र का भी भाष्य है। फिर इसमें राधा तत्त्व का वर्णन क्यों नहीं है? लेकिन ऐसा नहीं है। श्री राधा का नाम भागवत में भरा पड़ा है। राधोपनिषद् में श्री राधा के 28 नाम गिनाये गए हैं। उनमें एक नाम है श्री, एक नाम रमा है, एक नाम गोपी। इसी प्रकार ब्रह्मवैवर्त पुराण में 16 नाम बताये गए राधा के, उनमें एक नाम है वृंदा, एक नाम योगमाया इत्यादि। तो भागवत में श्री राधा के कई पर्यायवाची नाम आये हैं। जब श्री कृष्ण के अनंत नाम हैं तो यह अनिवार्य नहीं कि सर्वत्र राधा नाम से ही राधा तत्त्व का वर्णन हो। कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं –
भगवानपि ता रात्री: शरदोत्फुल्लमल्लिका:
वीक्ष्यरन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः (भागवत : 10-29-1)
अर्थात् भगवान ने भगवान होकर भी, भगवान माने ऐश्वर्य परिपूर्ण –
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः।
ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ।।
जो षडैश्वर्य परिपूर्ण हो उसको भगवान कहते हैं। ऐसे भगवान जो सदा आनंदमय हैं, परिपूर्ण हैं –
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते (वेद)
पूर्ण से पूर्ण निकालो तब भी पूर्ण बचे ऐसा पूर्ण। लेकिन उन्होंने उन शरदकाल की रात्रियों को देखकर रमण करने के लिए मन बनाया। मन बनाया यानि स्वयं इच्छा किया। तो यहाँ योगमाया शब्द आया है। योगमाया युक्त होकर मन बनाया। यही योगमाया राधा हैं। तो इसी भागवत में जैसे श्रीकृष्ण के लिए कहीं नारायण, कहीं हरि इत्यादि नामों का प्रयोग हुआ है, कहीं कृष्ण नाम आया है, कहीं विष्णु आया है, तो कोई भी पर्यायवाची शब्द हो उसमें क्या भेद हुआ? आगे इसी भागवत में कहा –
यां गोपीमनयत्कृष्णो विहायान्याः स्त्रियो वने (10-30-36)
यानि जिस गोपी को लेकर श्रीकृष्ण चले गये थे, महारास से गायब हो गये थे। यहाँ यह गोपी शब्द राधा का ही पर्यायवाची है। और आगे चलिए –
रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभिः
यथार्भकः स्वप्रतिबिम्बविभ्रमः(भागवत : 10-33-17)
अर्थात् श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ उसी प्रकार रमण किया जैसे कोई बच्चा अपनी परछाई से खेलता है। तो यहाँ रमेश कहा। अर्थात् रमा का ईश। तो रमा का अर्थ यहाँ राधा है। महाविष्णु रास करने नहीं आये थे श्री कृष्ण की जगह। अगर कोई कहे रमेश का मतलब होता है रमा का ईश , तो रमा मतलब लक्ष्मी। तो इस प्रकार लक्ष्मी के पति विष्णु, वैकुण्ठ के स्वामी। लेकिन वैकुण्ठ के अधिपति विष्णु तो लीला करते ही नहीं। गोपियों के साथ श्री कृष्ण ने रास किया था तो रमेश मतलब रमा के ईश यानि राधा के ईश श्रीकृष्ण। तो जैसे हम जल पी रहे हैं, वारि पी रहे हैं, सलिल पी रहे हैं इत्यादि का अर्थ एक ही है। इसी प्रकार अनेक पर्यायवाची शब्दों द्वारा राधा का निरूपण किया गया।
किसी भी साहित्य में पात्र का नाम दो प्रकार से निरुपित होता है अभिधा से व व्यंजना से। तो अभिधा से व्यंजना उत्कृष्ट माना गया है, श्रेष्ठ माना गया है। अभिधा अर्थात् सीधे-सीधे नाम लेना और व्यंजना अर्थात् इशारे से कहना।
यथा प्रियंगु पत्रेषु गूढ़मारुण्यमिष्यते
श्रीमद्भागवतेशास्त्रे राधिका तत्त्वमीदृशम्
जैसे मेहंदी का पत्ता हरा होने पर भी लगाने पर लाल रंग छोड़ता है, वह लाल रंग पत्ते में दिखाई नहीं पड़ता इसी प्रकार राधा परम गूढ़ तत्त्व है। शुकदेव परमहंस ने व्यंजना द्वारा इसका निरूपण किया। रसिकों ने इसका एक कारण और बताया है –
श्रीराधानाममात्रेण मूर्च्छा षाण्मासिकी भवेत्
राधा नाम शुकदेव परमहंस को इतना प्रिय था कि राधा बोलते ही उनको 6 महीने की समाधि हो जाती थी। जबकि उन्हें 7 दिन में ही परीक्षित का उद्धार करना था। इसलिए जानबूझकर व्यंजना द्वारा राधा तत्त्व का निरूपण किया ताकि मूर्छा न हो।
छुपायो शुक सार भागवत राधा (जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)
तो श्री राधा तो समस्त श्रुतियों की सार तत्त्व हैं –
श्रुतिन को सार तत्त्व हैं राधा (जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)
विविक्ते वेदा: स्तुवन्ति (वेद)
राधा तत्त्व इतना निगूढ़ है कि वेद भी एकांत में राधा तत्त्व का चिंतन करते हैं, उनकी स्तुति करते हैं, इसको मुख से प्रकट नहीं करते। लेकिन फिर भी वेदों में भागवत में, अन्य समस्त पुराणों में राधा तत्त्व का वर्णन कहीं अभिधा कहीं व्यंजना से, कहीं कम कहीं अधिक किया गया है। इसलिये भागवत में अथवा वेदों में राधा तत्त्व का वर्णन नहीं है ऐसी शंका नहीं करनी चाहिए।
सुश्री श्रीधरी दीदी प्रचारिका जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज