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मनुष्य ही भाग्य विधाता है
संसार में अधिकांश लोग भाग्य, भाग्य का नारा लगाकर अकर्मण्य हो जाते हैं। घोर संसारी लोग तो ऐसा करते ही हैं साथ ही अध्यात्म पथ पर चलने की इच्छा रखने वाले लोग भी प्रायः यह कहते देखे जाते हैं कि...
Read Moreवैराग्य क्या है और कैसे हो ?
संसार में प्रायः लोग वैराग्य के वास्तविक अर्थ को समझे बिना ही स्वयं को विरक्त मानकर इस भ्रम में जीते रहते हैं कि हम भक्ति के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ रहे हैं।
Read Moreसंग का प्रभाव
मनुष्य के जीवन पर संग का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। हम जैसा संग करते हैं वैसी ही हमारी चित्तवृत्ति हो जाती है, पुनः तदनुसार ही मनुष्य का व्यवहार क्रियाकलाप इत्यादि प्रभावित होते हैं।
Read Moreमन : हमारा शत्रु भी मित्र भी
हमारे शास्त्रों ,में मनुष्य की एकादश इंद्रियाँ बताई गई हैं। इनमें से पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं - आँख, नाक, कान, त्वचा, रसना एवं पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं - हाथ, पैर, वाणी, मल विसर्जन और प्रजनन की इन्द्रियाँ। ग्यारहवीं इन्द्रिय है, ‘मन‘।
Read Moreमानव देह : एक अनमोल हीरा
मानव देह प्राप्त सभी जीव परम सौभाग्यशाली हैं। देवताओं से भी अधिक बड़भागी हैं। 84 लाख प्रकार के देहधारियों में केवल मनुष्य देहधारी ही सर्वश्रेष्ठ है।
Read Moreचिंतन की शक्ति
मनुष्य के पास एक ऐसी शक्ति है जिसके आधार पर वह जैसा चाहे बन सकता है और जो प्राप्त करना चाहे प्राप्त कर सकता है। वह शक्ति है, चिंतन की शक्ति, जो संसार की सबसे बड़ी शक्ति है।
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